November 18, 2009

Jeevan nahi mara karta hai

छिप छिप अश्रु बहाने वालो
मोती व्यर्थ लुटाने वालो
कुछ सपनो के मर जाने से
जीवन नही मरा करता है

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आंख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी

गीली उमर बनाने वालो
डूबे बिना नहाने वालो
कुछ पानी के बह जाने से
सावन नही मरा करता है

माला बिखर गई तो क्या
खुद ही हल हो गई समस्या
आँसू ग़र नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या

रूठे दिवस मनाने वालो
फटी कमीज़ सिलाने वालो
कुछ दीपों के बुझ जाने से
आंगन नही मरा करता है

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
के़वल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती

वस्त्र बदलकर आने वालो
चाल बदलकर जाने वालो
चंद खिलौनों के खोने से
बचपन नही मरा करता है

लाखों बार गगरियां फूटीं
शि़क़न न आई पर पनघट पर
लाखों बार कश्तियां डूबीं
चहल पहल वोही है तट पर

तम की उम्र बढाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर
उपवन नही मरा करता है

लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गंध फूल की
तूफानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बंद न हुई धूल की

नफरत गले लगाने वालो
सब पर धूल उडाने वालो
कुछ मुखडों की नाराज़ी से
दर्पन नही मरा करता है

Poet: Gopal Das "Neeraj"

1 comment:

Vipul Bishnoi said...

superb....thanx alot for reminding childhood poem